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गणेश जी निराकार दिव्यता हैं जो भक्त के उपकार हेतु एक अलौकिक आकार में स्थापित हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, वह भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं।

गण का अर्थ है समूह। यह पूरी सृष्टि परमाणुओं और अलग अलग ऊर्जाओं का समूह है। यदि कोई सर्वोच्च नियम इस पूरी सृष्टि के भिन्न-भिन्न संस्थाओं के समूह पर शासन नहीं कर रहा होता तो इसमें बहुत उथल-पुथल हो जाती। इन सभी परमाणुओं और ऊर्जाओं के समूह के स्वामी हैं गणेश जी। वे ही वह सर्वोच्च चेतना हैं जो सर्वव्यापी है और इस सृष्टि में एक व्यवस्था स्थापित करती है।

आदि शंकराचार्य जी ने गणेश जी के सार का बहुत ही सुंदरता से गणेश स्तोत्र में विवरण किया है। हालांकि, गणेश जी की पूजा हाथी के सिर वाले भगवान के रूप में होती है, लेकिन यह आकार या स्वरुप वास्तव में उस निराकार, परब्रह्म रूप को प्रकट करता है।

वे ‘अजं निर्विकल्पं निराकारमेकम’ हैं। अर्थात, गणेश जी अजं (अजन्मे) हैं, निर्विकल्प (बिना किसी गुण के) हैं, निराकार (बिना किसी आकार के) हैं और वे उस चेतना के प्रतीक हैं, जो सर्वव्यापी है। गणेश जी वही ऊर्जा हैं जो इस सृष्टि का कारण है। यह वही ऊर्जा है, जिससे सब कुछ प्रकट होता है और जिसमें सब कुछ विलीन हो जाता है।

 

 

गणेश जी के हाथी के सिर वाले भगवान बनने की कथा हिंदू पौराणिक कथाओं में प्रसिद्ध है। इसके पीछे एक प्रमुख कथा इस प्रकार है:

एक बार माता पार्वती ने स्नान करने से पहले अपने शरीर के उबटन से एक बालक को बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। उन्होंने उस बालक से कहा कि वह द्वार पर पहरा दे और किसी को अंदर आने न दे। उसी समय भगवान शिव, जो माता पार्वती के पति थे, वहां पहुंचे। बालक ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया, क्योंकि उसे अपनी माँ का आदेश था। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने बालक का सिर काट दिया।

जब माता पार्वती को इस घटना का पता चला, तो वह अत्यंत दुःखी हो गईं। उनके दुःख को देखकर भगवान शिव ने उसे शांत करने के लिए बालक को पुनर्जीवित करने का वचन दिया। उन्होंने अपने गणों को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा में जाएं और जो भी पहला जीव उन्हें मिले, उसका सिर ले आएं। गण उत्तर दिशा में गए और उन्हें सबसे पहले एक हाथी मिला, जिसका सिर काटकर वे भगवान शिव के पास ले आए। शिव ने उस सिर को बालक के शरीर पर स्थापित कर दिया, और इस प्रकार गणेश जी को नया जीवन मिला।

इसके बाद गणेश जी को "गणों के अधिपति" यानी "गणपति" कहा जाने ल

गा। उन्हें सभी शुभ कार्यों में प्रथम पूजनीय स्थान प्राप्त हुआ, और उनका सिर हाथी का होने के कारण उन्हें "गजानन" भी कहा गया।

 

 

हिन्दू धर्म में गणेश जी सर्वोपरी स्थान हैं। गणेश जी, शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। उनकी गाड़ी मूषक है। गणों के स्वामी के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। सभी देवताओं में यूक्रेनी पौराणिक कथाओं की जाती है। श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। भगवान गणेश का स्वरूप अत्यंत मनमोहक एवं मंगलदायक है। वे एकदंत और चतुरबाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे टोकन: पाश, क्रॉवच, मोदकपात्र और वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लंबोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चंदन धारण करते हैं और उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं। वे अपने उपास्कों पर शीघ्र-आवेश्यक शक्तियाँ अपने सभी मनोभावों को पूर्ण करते हैं।

 हिंदु धंर्म शास्त्रो के अनुसार गणपति गणेश जी  आदि देव हैं जिनकी पूजा सबसे पहले की जाती है।
समस्त धार्मिक उत्सवों, मुण्डन, विवाहोत्सव आदि सभी शुभ अवसरों पर सभी कार्य निर्विघ्न सम्पन्न करने के लिए सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश जी की पूजा ही की जाती है।

हिन्दू धर्म शास्त्रो के अनुसार जिस शुभ कार्य की शुरुआत गणेश पूजन के बिना होती है, उसका शुभफल मिलने की सम्भावना अत्यंत न्यून होती है ।

 

पार्वती जी के शरीर पर मैल क्यों था?

 

पार्वती प्रसन्न ऊर्जा का प्रतीक हैं। उनके मैले होने का अर्थ है कि कोई भी उत्सव राजसिक हो सकता है, उसमें आसक्ति हो सकती है और आपको, आपके केन्द्र से हिला सकता है। मैल अज्ञान का प्रतीक है, और भगवान शिव सर्वोच्च सरलता, शान्ति और ज्ञान के प्रतीक हैं।

क्या भगवान शिव, जो शान्ति के प्रतीक थे, इतने गुस्से वाले थे कि उन्होंने अपने ही पुत्र का सिर धड़ से अलग कर दिया!

 

भगवान गणेश के धड़ पर हाथी का सिर क्यों?

 

तो जब गणेशजी ने भगवान शिव का मार्ग रोका, इसका अर्थ हुआ कि अज्ञान, जो कि मस्तिष्क का गुण है, वह ज्ञान को नहीं पहचानता, तब ज्ञान को अज्ञान से जीतना ही चाहिए। इसी बात को दर्शाने के लिए शिवजी ने गणेशजी के सिर को काट दिया था। 

 

हाथी का ही सिर क्यों? 

 

हाथी ‘ज्ञान शक्ति’ और ‘कर्म शक्ति’, दोनों का ही प्रतीक है। एक हाथी के मुख्य गुण होते हैं – बुद्धि और सहजता। एक हाथी का विशालकाय सिर बुद्धि और ज्ञान का सूचक है। हाथी कभी भी अवरोधों से बचकर नहीं निकलते, न ही वे उनसे रुकते हैं। वे केवल उन्हें अपने मार्ग से हटा देते हैं और आगे बढ़ते हैं – यह सहजता का प्रतीक है। इसलिए, जब हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो हमारे भीतर ये सभी गुण जागृत हो जाते हैं, और हम ये गुण ले लेते हैं।

 

 

 

 

ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है और जो भी संसार के साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेशजी हैं। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं। गणेश जी का नाम हिन्दू शास्त्रो के अनुसार किसी भी कार्य के लिये पहले पूज्य है। इसलिए इन्हें आदिपूज्य भी कहते है। गणेश कि उपसना करने वाला सम्प्रदाय गाणपतेय कहलाते है।

गणेशजी का बड़ा पेट उदारता और संपूर्ण स्वीकार को दर्शाता है। गणेशजी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है – अर्थात, ‘घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूं’ और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है,उसका अर्थ है, अनंत दान, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे। गणेशजी एकदंत हैं, जिसका अर्थ है एकाग्रता। 

 

भगवान गणेश की चार भुजाओं का गहरा आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक अर्थ है। ये भुजाएँ उनके अलग-अलग गुणों और शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं 

 

प्रथम भुजा (ऊपरी दाईं ओर)

 

इसमें भगवान गणेश अंकुश धारण करते हैं। अंकुश हाथी को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला उपकरण है, और यह प्रतीक है मन पर नियंत्रण का। यह हमें यह सिखाता है कि मन की चंचलता पर विजय पाने के लिए अंकुश की तरह सख्त अनुशासन की आवश्यकता होती है

 

 

दूसरी भुजा (ऊपरी बाईं ओर)

 

इसमें वे पाश (फंदा) धारण करते हैं, जो संबंधों और इच्छाओं का प्रतीक है। यह बताता है कि भगवान सभी बाधाओं और बुराइयों को नष्ट करने में सक्षम हैं, साथ ही यह इस बात का प्रतीक है कि हमें जीवन में अज्ञानता और सांसारिक मोह से मुक्त होना चाहिए।

 

 

तीसरी भुजा (नीचे दाईं ओर)

यह भुजा वरद मुद्रा में होती है, जो आशीर्वाद और सुरक्षा का प्रतीक है। इसका मतलब है कि भगवान गणेश अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं और उनके जीवन की सभी बाधाओं को दूर करते हैं।

 

 

 

चौथी भुजा (नीचे बाईं ओर)

इसमें गणेश जी मोदक (मिठाई) धारण करते हैं। मोदक आध्यात्मिक आनंद और आत्मसंतोष का प्रतीक है। यह इंगित करता है कि सच्ची आध्यात्मिक साधना से अंत में मोक्ष और सुख की प्राप्ति होती है, जैसे मोदक खाने से मीठा स्वाद मिलता है।

 


इन चार भुजाओं के माध्यम से भगवान गणेश हमें जीवन के चार मुख्य लक्ष्यों की शिक्षा देते हैं

धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष। साथ ही, वे जीवन की चुनौतियों से लड़ने के लिए मन, कर्म, और आत्मा को संतुलित रखने का मार्गदर्शन करते हैं।

 गणेशजी, हाथी के सिर वाले भगवान, दयालु क्यों एक चूहे से छोटे वाहन चलते हैं? क्या यह बहुत अजीब नहीं है! फिर से, यह एक गहरा रहस्य है। एक चूहा उन रस्सियों को अलग कर देता है जो हमें बांधती हैं। चूहा उस मंत्र के समान है जो अज्ञान की अनन्य परतों को पूरी तरह से काट सकता है और उस परम ज्ञान को प्रत्यक्ष कर सकता है जिसके साथ भगवान गणेश का प्रतीक है। हमारे प्राचीन ऋषि ऋषियों की गहन बुद्धि की दृष्टि से वे दिव्यता को शब्दों के स्थान पर इन प्रतीकों के रूप में रखते थे, क्योंकि शब्द तो समय के साथ बदल जाते हैं लेकिन प्रतीक कभी नहीं बदलते। तो जब भी हम उस सर्व भाई का ध्यान करें, हमें इन गहरे प्रतीकों को अपने मन में रखना चाहिए, जैसे हाथी के सिर वाले भगवान, और उसी समय यह भी याद रखें कि गणेशजी हमारे अंदर ही हैं। यही वह ज्ञान है जिसके साथ हमें गणेश चतुर्थी मनानी चाहिए।

 

 

 

 

 

* गणेश का अति सुन्दर शरीर अपने में कई गूढ़ और विशिष्ट अर्थ को संजोए हुए है।

* लम्बा उदर गणपति जी की असीमित सहन शक्ति का प्रतीक है।

* चार भुजाएं चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता का धोतक हैं ।

* गणपति जी की छोटी-छोटी पैनी आंखें उनकी तीक्ष्ण दृष्टि,

  • विघ्नहर्ता के बड़े-बड़े कान उनकी सुनने की अधिक शक्ति,और उनकी लम्बी सूंड तेज बुध्दि का प्रतीक है।



माना जाता है कि एक बार परशुरामजी जी भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर गए। उस समय भगवान भोले नाथ ध्यानमग्न थे अतः गणेश जी ने परशुरामजी को अंदर जाने से रोक दिया। तब क्रोधित हो कर परशुराम जी ने गणेश जी पर अपने फरसे से वार कर दिया। वह फरसा परशुराम जी को भगवान शिव ने ही दिया था, इसलिए उसका सम्मान रखने के लिए गणेश जी ने उस फरसे का वार अपने दांत पर झेल लिया, जिसके फलस्वरूप उनका एक दाँत टूट गया और वह एकदन्त कहलाये।

 

गणेश जी की सवारी करते हैं। चूहा, इस बात का प्रतीक है कि जो बंधन, जिस अज्ञानता में हम छोड़ते हैं, चूहा उसे कुतर कर, एक-एक हिस्से को काट कर खत्म कर देता है। चूहा हमें वह परम ज्ञान की ओर ले जाता है जिसके प्रतिनिधि गणेश करते हैं।

 

शास्त्रों में कई स्थानों पर गणेश जी का वाहन सिंह, मयूर, मूषक और घोड़े के बारे में बताया गया है।

*सतयुग में भगवान गणेशजी के वाहन सिंह हैं और उनके 10 भुजाएं हैं तथा उनका नाम विनायक है।

* त्रेता युग में भगवान विघ्नहर्ता का वाहन ‍मैरी है, उनके 6 भुजाएं हैं और रंग सफेद कहा गया है ‍जैसा किमृयेश्वर के नाम से ‍‍कहा जाता है।

  • द्वापरयुग में श्री गजानन का वाहन मूषक है, उनके भुजाएं 4 एवं रंग लाल हैं। इस युग में गणेश जी गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं।
  •  कलयुग में गणपति जी का वाहन घोड़ा है, 2 भुजाएँ और वर्ण धूम्रवर्ण हैं। इसी प्रकार कलयुग में इनका नाम धूम्रकेतु भी है। *गणपति जी को रोली का तिलक लगाना चाहिए।
  • गणपति जी को लाल रंग का फूल अत्यंत प्रिय है।
  •  भगवान गजानन दूर्वा और शमी पत्र चढाने से अत्यंत आकर्षक होते हैं। *गणपति जी को बेसन के और मोदक के दूध बहुत पसंद हैं।
  • 'ॐ गं गणपतये नम:' मंत्र का जाप करने से गणपति जी अपने भक्तों पर शीघ्र ही कृपालु होते हैं।